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शत्रुराष्ट्रनीति

चीन का ग्वादर पोर्ट जाने का रास्ता बलूचिस्तान होकर जाता है और चीन वहाँ पर पाक सेना की सहायता से जनता को मारने का सिलसिला चला रखा है और साथ ही लगभग दो अरब डॉलर का निवेश भी कर रहा है।

अभी चीन को पता चल रहा है कि NSG मुद्दे पर चीन ने भारत को हल्के में लेकर कितनी भारी गलती की है। एक ओर चीन साउथ चाइना सी पर अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहा है I

पिछले दो वर्षो की खामोशी के बाद मोदी जी ने भारत के सभी राजनैतिक दलों को विश्वास में लेते हुए अचानक ही बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) पर बयान दिया, POK को भारत का अभिन्न अंग भी बता दिया I प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दो वर्षो से मोदी जी UNO (संयुक्त राष्ट्र संघ) और NSG में स्थाई सदस्यता के लिए कोशिश कर रहे है, पर चीन हर बार अड़ंगा लगा रहा हैI ऊपर से चीन भारत को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान का साथ भी दे रहा है और POK और बलूचिस्तान में अपने लाभ और भारत को घेरने के लिए निर्माण कार्य भी कर रहा हैI
अन्तराष्ट्रीय न्यायलय में एशिया क्षेत्र में साऊथ चाइना सी वाला हिस्सा (अधिकार) भी हार गया है, और अब वो चाहता है की भारत उसका साथ दे, इसीलिए चीन ने अपने विदेश मंत्री वांग यी को दिल्ली भेजा, और साथ में सन्देश भी भेजा कि NSG के मार्ग अभी बंद नहीं हुए हैंI

भारत के वर्तमान नेतृत्व ने इसी समय का लाभ उठाया, और POK (पाक अधिकृत कश्मीर) को भारत का अभिन्न अंग बता दिया और बलूचिस्तान के हितों की रक्षा करने और पाकिस्तान से आजाद करवाने के लिए विश्व को संदेश भी दे दिया। और चीनी विदेश मंत्री भारत दौरे पर ग्वादर पोर्ट सिलसिले में समर्थन माँगने पहुँचे, वही दूसरी और मोदी जी ने सीधे POK की बात उठा कर चीन को बता दिए की NSG छोडो, POK पे हमारा समर्थन करो।

हिंदुस्थान के इस कुटनीतिक निर्णय से पूरी दुनिया हैरान है, चीन चारो और से फंस गया है। चीन NSG के बदले समर्थन की उम्मीद कर रहा था लेकिन जो दांव  भारत की शत्रुराष्ट्रा नीति ने चला है, उससे चीन गले में हड्डी अटक जाने का अनुभव कर रहा हैं ।
POK पे समर्थन का मतलब ग्वादर को भूल जाओ। और भारत से नाराजगी मतलब वियतनाम जापान जैसे अन्य देशों को भारत का समर्थन और साउथ चाइना सी से चीन का अधिकार समाप्त।

बलूचों ने उखाड फेंका पाकिस्तानी झण्डा।

चाणक्यनीति : जब शत्रु कमजोर हो तब उस पर वार करो।

वर्तमान नेतृत्व की सोची समझी रणनीति।

अब चाइना असमंझस में पड़ गया कि POK को पाकिस्तान का अंग बता कर पाकिस्तान की सहायता की जाए या NSG मे भारत की स्थाई सदस्यता देकर अपने साउथ चाइना सी विवाद को सुलझाया जाए, भविष्य में जो भी कुछ हो। पर मैं इतना जानता हूँ कि भारत का वर्तमान नेतृत्व  मुँह से चाहे कुछ न बोले पर अपने दुश्मन को कब कैसे और कहाँ मारना है वो ये अच्छी तरह जानते है। इसको कहते है जले पर नमक छिड़कना।

जो कांग्रेस ६० वषों मैं नहीं कर सकी ,भारत के वर्तमान नेतृत्व ने २ वर्षों में कर दिया, परराष्ट्रनिति एवं शत्रुराष्ट्रनीति का उचित उपयोग करने के लिए वर्तमान सरकार को मेरा ..!! 
साधुवाद

                                                                                                                                      विशाल सुरेश शर्मा 
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जीता जागता राष्ट्रपुरुष है...



(आज पासून 'हिंदू वार्ता' वर हिंदीतून हि लेख वाचायला मिळतील )



(प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अनन्यसाधारण महत्व अटल जी के लिए था,संघ स्वयंसेवक के रूप "राष्ट्र सर्वोपरि" की विचारधारा अटल जी आत्मसात कर चुके थे)


एक चारित्र्यवान हिंदू, राष्ट्रधर्म भक्ती को अपने अंतरमन में संजो कर औऱ सनातन हिंदू धर्म एवं संस्कृत के मुल्यों का संवाहक बन जब राजनीती में आता है, तब उस व्यक्ती को वही स्थान प्राप्त होता है जो आज आदरणीय अटलबिहारी वाजपेयी जी को प्राप्त है, गांधी और नेहरू परिवार द्वारा भारत के राजनैतिक नेतृत्व को एकाधिकार मान वंशवाद, परिवारवाद एवं अपने व्यक्तिगत मूल्यों को राष्ट्र से ऊपर मानने वाली मानसिकता को अटल जी के सक्रिय राजनैतिक प्रवेश ने एक बहोत बड़ी चुनोती प्रस्तुत की, अटल जी मे यह चुनोती दे पाने का सामर्थ्य तत्कालीन परिस्थितियोने कूट कूट कर भर दिया था, अटल बिहारी वाजयेपी १९४२ में उस वक्त राजनीती में आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई २३ दिनों के लिए जेल गए। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु क्या मुल्य हम हिन्दुस्थानियों को चुकाना पड़ा है इस बात का ज्ञान युवा अवस्था मे ही अटल जी को हो चुका था, इस कारण उस अर्जित स्वतंत्रता  एवं उसके द्वारा प्रदत्त प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अनन्यसाधारण महत्व अटल जी के लिए था, संघ स्वयंसेवक के रूप में "राष्ट्र सर्वोपरि" की विचारधारा अटल जी आत्मसात कर चुके थे। १९५१ में वाजपेयी जी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए। १९५७ में अटलजी बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। १९६८ में वो राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने। यह वो समय था जब पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पुण्यप्रताप के बल से भारत की मलिन राजनीती को राष्ट्रनीती में परिवर्तित करने का प्रयास अटलजी द्वारा होने लगा था। 





 अटलजी के राजनैतिक जीवन का उद्देश्य क्या था यह समझने के लिए उनका यह कथन पर्याप्त है कि
        "सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आऐंगी जाऐंगी, पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी,  मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए यह प्रजातंत्र अमर रहना चाहिए"।
राष्ट्रीयचारित्र्य विहीन राजनीति को इस राष्ट्र का महत्व समझाते हुए, "हिंदुत्व अर्थात राष्ट्रीयत्व" के भाव से सराबोर अटल जी ने जब 

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये...

इस तरह अपने राष्ट्र का मुल्य समझाया तब इस राष्ट्र की राजनीती में, राष्ट्रोद्धार राष्ट्रोन्नती जैसी संकल्पनाएँ अस्तिव में आने लगी ।
अटल जी अपना राजनैतिक जीवन ऐसे अजातशत्रु की तरह जिये कि उनके प्रबल विरोधियों को भी उनसे मोह होने लगता था । अटल जी के राष्ट्रवाद का स्तर क्या था?
    १९७२ के युद्ध में विपक्ष में होने के बाद भी अटल जी तत्कालीन सत्तापक्ष के साथ राष्ट्रहित में एक सहयोगी की भूमिका में नजर आए, वहीं नरसिम्हाराव सरकार ने अपने विरोधी राजनैतिक दल के नेता अर्थात श्री अटलजी को
 संयुक्तराष्ट्र सभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा, ऐसे अनगिनत प्रसंग हैं जहाँ विपक्ष में होने के बाद भी अटल जी ने तत्कालीन सरकार के उन सभी मुद्दों का समर्थन किया, जो देशहित में थे और यही कारण है कि आज विरोधी राजनैतिक दल का प्रत्येक नेता यह निर्विवाद स्वीकार करता है कि अटलजी की राजनीति का मूलाधार राष्ट्रहित था।
   मुझे लगता के भविष्य में इस राष्ट्र की राजनीती को हिंदुत्व को आधार मानकर ,राष्ट्रनीती में परिवर्तित करने का प्रयास यदि हो तो अटल जी द्वारा परिभाषित-
            "हिन्दू धर्म के प्रति मेरे आकर्षण का मुख्य कारण है कि यह मानव का सर्वोत्कृष्ट धर्म है। हिंदू धर्म न तो किसी एक पुस्तक से जुड़ा है और न ही किसी एक धर्म प्रवर्तक से जुड़ा है, जो कालगति के संग असंगत हो जाते हैं। हिन्दू धर्म का स्वरूप हिन्दू समाज द्वारा निर्मित होता है और यही कारण है कि यह धर्म युग-युगांतर से संवर्धित और पुष्पित होता जा रहा है।" 
-विशाल सुरेश शर्मा, मलकापूर  


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तुमची गरज आहे ..!!!



(आपल्याला तिथे जाणे शक्य नसले तरी त्यांच्या मार्फत आपण काही वस्तू पोहचवु शकतो)


गेल्या काही दिवसांपासून आपल्या शेजारील राज्यावर मोठी आपत्ती आली आहे. ती आपत्ती म्हणजे 'केरळ महापूर'. यासाठी सरकारने संपूर्ण यंत्रणा तत्काळ कार्यरत केली आहे. परंतु या देशाप्रती आणि समाजाप्रती आपण ही काहीतरी देणे लागतो. नेहमी आपण माणुसकी धर्म महत्त्वाचा अश्या प्रकारचे वक्तव्य सहज करतो. पण ज्यावेळी ते सत्यात उतरवण्याची वेळ येते त्यावेळी मात्र मागे सरतो. आज केरळ मध्ये महापूर आल्यावर अशीच सामाजिक जाणिवा असलेले व्यक्ती पुढे सरसावतात. अश्याच एका व्यक्तीने आज आपले कर्तव्य पूर्ण करण्यास एक पाऊल पुढे टाकले आहे. त्यांचे नाव आहे, डॉक्टर रविंद्र मराठे. ते फूड आर्मी एनजीओ मार्फत सोमवारी संध्याकाळ पर्यंत मदत पोहचवणार आहेत. सोमवारी काही वस्तूसकट एनजीओ केरळमध्ये मदत करण्यास जाणार आहेत. त्यांनी त्यांचे कर्तव्य पूर्ण करण्यास तयारी दाखवली पण आपले काय? 
    आपल्याला तिथे जाणे शक्य नसले तरी त्यांच्या मार्फत आपण काही वस्तू पोहचवु शकतो. त्यासाठी त्यांनी आवाहन केले आहे. खाली दिलेल्या फोटो प्रमाणे त्यांना खाद्यपदार्थचे पाकीट पोहचवावे. 


अधिक माहितीसाठी संपर्क- 
डॉक्टर रविंद्र मराठे
 ९२२११०७२३६

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खाली राख नाही वर धूर नाही....

श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदूस्थानचे संस्थापक आदरणीय श्री संभाजीराव भिडे गुरूजी यांनी अटल बिहारी वाजपेयींच्या  पवित्र स्मृतीस अभिवादन करून श्रद्धांजली देताना त्यांच्या राष्ट्रीप्रेमाविषयी सांगताना पुढील उद्गार काढून श्रद्धांजली अर्पण केली. 
''हे अति अति अति दुःखाची गोष्ट आहे. ही वार्ता ऐकल्यानंतर संबंध देशातल्या सगळ्याच लोकांच्या अंतकरणाला आपल्या घरातलं कोणीतरी गेला असच वाटतंय. आयुष्य ते जगले ते भारतमातेच्या पूजेसाठीच जगले. त्यांचा असा विश्वास होता की देशसेवा आणि भारतमातेची सेवा याच्यात फरक नाहीये. 
जे कशासाठी वेली तरू फुल घ्यावे ।
स्वतः जीवनाच्या फुलांनी पुजावे ।।
असंख्यात पुष्पे हवी पूजनाला ।
म्हणा अर्पिला देह हा मायभूला ।। 
या कठोर व्रताच आचरण करणारं त्यांच जीवन होतं. ते कर्मवंत होते, ज्ञानवंत होते, शिलवंत होते, बुद्धिवंत होते, आणि मुख्य म्हणजे भारतमातेचे विलक्षण कर्तबगार असे सुपुत्र होते. त्यांनी दाखवलेल्या मार्गानी हा देश नेण्याचं उत्तरदायित्व भगवंताने तुम्हा आम्हा सर्वांवरती सोपवलेला आहे. 
अग्नी कर्पूराचे मेळी । काय उरली काजळी ।।
तुका म्हणे होती । तुझी माझी एक ज्योती ।। 
अग्नी आणि कापूर एकत्र आल्यानंतर खाली राख नाही वर धूर नाही, प्रकाश आणि सुंगध देऊन निघून जावं तसच त्यांचं जीवन आपल्यासमोर प्रत्यक्ष ते जगले ते आपण पाहतो. तो आदर्श घेऊन  भविष्यात सगळ्या उगवत्या पिढीतल्या तरुणांनी जगावं आणि या भारतमातेला विश्वाचा बाप बनण्याची ताकद द्यावी असं भगवंताच्या पायाशी मागून मी त्यांना श्रद्धांजली वाहतो. विनम्र प्रार्थना करतो. "
असं म्हणून त्यांनी या देशाचे माजी पंतप्रधान व भारताच्या राजकारणात भीष्म पितामह तसेच अजात शत्रू म्हणून ओळखल्या जाणारे अटल  बिहारी वाजपेयी यांना दाटलेल्या कंठानी भावपूरनी आदरांजली अर्पण केली.
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"हारा हुआ वाजपेयीं कैसे दिखता है, ये देखने आये हो"

          ज्यावेळी भाजप निवडणुकीत एका मोठ्या पराभवाला समोरा गेला, त्यांनतर एका सभेत मंचावरती भाजपचे काही उमेदवार आणि नेते उपस्थित होते. त्यांचे नेतृत्व 'अटल बिहारी वाजपेयी' करत होते. मंचावरती ध्वनिक्षेपकासमोर जमलेल्या संपूर्ण जनसमुदायावरती एक नजर फिरवत मोठा श्वास घेऊन भाषणाला 'अटलजींनी' सुरवात केली, 
    "क्यो आये हो आप यहा? 
आप किसीं के सभा मे नही आए हो, 
आप हारा हुआ वाजपेयीं कैसे दिखता है, 
 ये देखने आये हो"
    असा संवाद करून जमलेल्या लोकांच्या काळजाला हात घालून आपल्या अभिभाषणाला त्यांनी सुरवात केली.
    आज दिनांक १६ ऑगस्ट २०१८, रोजी सायंकाळी 'अटल बिहारी वाजपेयी' यांनी डोळे मिटून आपला प्रवास थांबवला. ही बातमी ज्यावेळी समजली त्यावेळी त्यांचे हे शब्द कानात घुमायला लागले. अन् अश्रूंनी डोळ्यांच्या कडा पानवल्या. आज आपल्यातून केवळ राजकीय नेताच नाही तर देशा-धर्माला वाहिलेला नेता, एक प्रभावशाली, नेतृत्वाशाली नेता तसेच प्रत्येक हिंदुस्थानीच्या मनात असलेला आधारस्तंभ निखळला. एक राजकीय नेता, एक पत्रकार, एक लेखक, एक कवी, आणि उत्कृष्ट वक्ता आज हिंदुस्थानने गमावला. 'अटलजींच्या कार्य-कर्तृत्वाबद्दल लिहावे तितके कमीच. आज श्रीकृष्ण च्या काही ओळी आठवतात, 
    परित्राणाय साधूनाम विनाशायच दुष्कृताम । 
    धर्म संस्थापणार्थाय संभवामि युगे युगे ।।

ज्यावेळी धर्मावर आघात होतो त्यावेळीच प्रत्येक युगात गरजा पूर्ण करणारा नेता नियतीनुसार तयार होतो. आणि हिंदुस्थानसाठी अटल बिहारी वाजपेयी हा काळाने लोकांना अर्पण केलेला नेता होते. ते राजकारणी म्हणून सुजाण होतेच. श्री कृष्णांच्या वाक्याप्रमाणे जनतेबद्दल जिव्हाळा आणि सामान्याबद्दल आपुलकी असलेला नेता होते. 
     अटलजींचा जन्म २५ डिसेंबर १९२४ साली झाला. त्यांच्या पत्रकार, लेखक, वक्ता आणि नेता अश्या अनेक छटा होत्या. स्वातंत्र्यानंतर देशभरात घराणेशाहीचे राजकारण असताना एका सामान्य घरातून आलेले 'अटलजी' २०व्या शतकाच्या अखेरीस आणि २१ व्या शतकाच्या प्रारंभी म्हणजेच १९९६ साली हिंदुस्थानचे दहावे पंतप्रधान झाले. त्यांनी भारतीय जनसंघाची स्थापना केली, तसेच भारतीय जनता पार्टीच्या जडणघडणीत त्यांचा मोलाचा सहभाग होता. १९६८ ते १९७३ पर्यंत त्यांनी भारतीय जनसंघाचे अध्यक्षपद ही भूषविले. ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघाचे प्रचारक होते. तसेच राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य, वीर अर्जुन या राष्ट्रीय भावना असलेल्या पत्रकांचे संपादक पद ही भूषविले. त्यांची राजकीय भूमिका प्रखर आणि स्पष्ट होती. त्याकाळी सोनिया गांधीविरोधात बोलणारे एकमेव अटलजी होते, १९ ऑगस्ट २००३ साली ज्यावेळी सोनिया गांधी यांनी 'अविश्वासाच्या ठरावाचे' षड्यंत्र रचले त्यावेळी आप पाच मिनिटं मे आपणा बाल नही ठीक कर सकती, हमसे कैसे निपटोगी? असे खडे बोल सुनावले. १९८८ मध्ये त्यांनी एक भविष्यवाणी केली होती, संपूर्ण देश भाजपाला उपहासात्मक नजरेने बघेल पण त्यावेळी पूर्व भागात कमळ फुललेले असेल. ही भविष्यवाणी आसाम आणि पूर्वांचलाच्या विजयाने खरी ठरली. तसेच १९९६ साली पाहिलेली प्रत्येक स्वप्न नरेंद्र मोदींच्या रुपात पूर्ण होताना त्यांनी पाहिली आहेत. म्हणून ते पंतप्रधान नरेंद्र मोदींचे राजकीय गुरू संबोधले जातात.
     ते देशाचे राष्ट्रनिष्ठ नेता होतेच तसेच त्यांचे साहित्य धर्मप्रेमा ने वाहिले होते. त्यांच्या हर एक कवितेत धर्म आणि राष्ट्राचे प्रकट दर्शन होते. त्यांच्या कविता पुढे संसदेत मत मांडताना वापरल्या गेल्या. ज्यावेळी जेएनयूच्या विद्यार्थ्यांनी 'भारत मुर्दाबाद' च्या घोषणा दिल्या. त्यावेळी स्मृती इराणी नी त्यांच्या कवितेने संसदेतील नेत्यांची बोलती बंद केली, ती कविता अशी की, 
     भारत कोई भूमी का तुकडा नही है,
     एक जिता जागता राष्ट्रपुरुष है । 
     ये वंदन की धरती है, अभिनंदन की धरती है ।
     ये अर्पण की भूमी है, ये तर्पण की भूमी है ।
     इसकी नदी नदी हमारे लिए गंगा है, 
    इसका कंकड कंकड हमारे लिए शंकर है ।
     हम जिएंगे तो इस भारत के लिए, 
     और मरेंगे तो भी इस भारत के लिए ।
     बेहती हुई अस्तियो को कोई कान लगाकर सूनेगा 
     तो एक ही आवाज आयेगी, भारतमाता की जय ।।

ते राष्ट्रच्या बाबतीत द्रष्टे होते. गझणीचा इतिहास त्यांनी किशोरवयात वाचला होता. त्यामुळे त्यांचे हृदय गझणीच्या आक्रमनाणे फार विरघळून जाई. त्यांच्या मनावर आज ही त्या जखमा होत्या. अफगाणिस्तान, इंडोनेशिया च उदाहरण ते नेहमी आपल्याला देत. त्या देशाचे परिवर्तन जरी इस्लाम मध्ये झाले तरी ही आज ही तिथे श्री रामाचं अस्तित्व आढळतच नाहीतर तेथिल लोकं आज ही आपला पूर्वज श्री राम असल्याची कबुली देतात. ही गोष्ट त्यांनी हिंदुस्थाना समोर आणली आणि श्री राम जन्मभूमीसाठी त्यांनी अतोनात प्रयत्न केले. सोरटी सोमनाथ मंदिराच्या उभारणीतही त्यांचा हात होता. धर्मासोबत राष्ट्र ही महत्वाचे मानले. म्हणून पोखरणची चाचणी यशस्वीपणे त्यांनी पूर्ण केली. 
    धर्म-राष्ट्रासाठी खळखळून वाहणारा पांढरा शुभ्र झरा आज थांबला. आज प्रत्येकाच्या मनावर त्यांच्या कविता कोरल्या आहेत. त्यांच्या बद्दल लिहावे तितके कमीच. पण शेवट करताना त्यांच्या ठन गई! मौत से ठन गई! या कवितेतील ओळी आठवतात त्या म्हणजे, 
 
जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, 
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? 

....अटलजी आज तुमचे पर्व संपले नाही तर थांबले, तुम्हाला ते सुरू करण्यास पुन्हा जन्म घ्यावा लागेलच...!!!

'अटल बिहारी वाजपेयींना' हिंदू वार्ता समूहातर्फे भावपूर्ण श्रद्धांजली..!!!

-संपादकीय

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स्वर्गे तिष्ठतु पुण्यात्मा



         हिन्दुस्थानच्या आधुनिक इतिहासाचा विचार करता, गेल्या विसाव्या शतकाच्या उत्तरार्धातील प्रमुख राजकीय नेत्यांच्या मांदियाळीतील अबाधित स्थान माजी पंतप्रधान दिवंगत भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयीजी यांचे आहे. अटलजी हे त्या मोजक्या राजकारण्यांपैकी होते, ज्यांनी राष्ट्रभक्तीचा दिपक आपल्या चित्तांत सदोदित प्रज्वलीत ठेवला. त्यांच्या देशप्रेमास, राष्ट्रभक्तीस तुलना नाही. आपल्या जीवनाच्या अंतकालापूर्वी बरीच वर्षे ते आजारी होते, पण तरीही 'अटलजी आहेत' ही बातमीच प्रचंड धीर देणारी होती. ग्वाल्हेरास पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयीजी यांचे घरात अटलजींचा दि.२५डिसेंबर१९२४ रोजी जन्म झाला. त्यांच्या अंगी उपजतच नेतृत्वाचे गुण होते. प्रारंभी कुमार सभा व आर्य समाजापासून त्यांच्या नेतृत्वास व कार्यास सुरूवात झाली. पुढे आपल्या प्रखर विद्वत्ता व कुशाग्र बुध्दीमत्तेच्या जोरावर त्यांनी संस्कृत व हिंदीत उत्कृष्ट गुणांनी पदवी संपादन केली. बाबासाहेब आपटे यांच्या प्रभावाने अटलजी संघप्रवाहात आले. सन १९३९ मध्ये त्यांचा संघाशी परिचय झाला. राष्ट्रभक्तीने ओतप्रोत भरलेले अटलजी व त्यांचे ज्येष्ठ बंधू तेवीस दिवसांसाठी चले जाव आंदोलनात तुरूंगात गेले. पुढे त्यांची मुक्तता करण्यात आली. उत्तर प्रदेशात विस्तारक म्हणून गेलेले अटलजी पं. दिनदयालजी उपाध्याय यांचे संपर्कात आले व त्यांच्या पत्रांमध्ये लेखन करू लागले. सन १९५१ मध्ये ते भारतीय जनसंघाचे कार्यकर्ते बनले. पुढे पं.श्यामाप्रसाद मुखर्जी यांचे सह काश्मिरप्रश्नी पंडीतजींबरोबर १९५४ मध्ये उपोषणास बसले होते. पंडितजींचा या आंदोलनादरम्यान अंत झाला. त्यानंतर भारतीय जनसंघास अटलजींनी वाहून घेतले. आपली प्रथम निवडणूक सन १९५७ मध्ये बलरामपूर येथे ते जिंकले. पुढे या महापुरूषाने खस्ता खाल्ल्या परंतु मागे वळून पाहीले नाही. 
        १९७५-७७ दरम्यान आणिबाणीच्या कालावधीत इतर विरोधीपक्षांच्या नेत्यांसह अटलजी तुरूंगात होते. सन १९७७ च्या निवडणूकीतील विजयानंतर
अटलजी मोरारजी देसाईंच्या मंत्रीमंडळांत परराष्ट्रमंत्री म्हणून पदाधीष्ठित झाले. अभिमानाची बाब ही, की संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या सभेत भाषण करणारे ते प्रथम भारतीय होत. त्याग तपस्येमूळे अटलजी लवकरच भारतीयांच्या गळ्यातील ताईत झाले. सन १९८० साली भारतीय जनता पक्षात आपल्या सहकाऱ्यांसह प्रविष्ट होवून अटलजी भाजपचे प्रथम अध्यक्ष बनले. या पक्षाने पुढे अनेक कार्ये सिध्दीस नेली. सन १९९६ साली ते तेरा दिवसांकरिता पहिल्यांदा प्रधानमंत्री बनले. तेरा दिवसांनी त्यांनी पदत्याग केला. १९९८-९९ ला दुसऱ्यांदा तर १९९९ -२००४ या कालावधीत तिसऱ्यांदा अटलजींनी पंतप्रधानपदाच्या आसनास सुशोभित केले. या सर्व कालावधीदरम्यान अनेक अभिमानास्पद घटना घडल्या, अनेक दु:खद घटनाही घडल्या परंतु अटलजींच्याच, 'ना हार मे ना जित मे किंचीत् नही भयभीत मै' या ओळींनुसार आपले धैर्य त्यांनी कधीच सांडले नाही. पोखरण च्या अणूस्फोटात असो वा कारगीलच्या समरात, वा गुजरातच्या भूकंपात, अटलजींनी संपूर्ण धैर्याने कार्य केले. त्यांनी आपल्या सेवाकार्यास एकनिष्ठेने पार पाडले.
       हिन्दुस्थानचा हा प्रधानमंत्री कडवा राष्ट्रभक्त होता, परंतु हळव्या कवीमनाचा होता. चंद्राच्या शितल छायेसारखा शांत होता. ते आपल्या काव्यातून ठायीठायी राष्ट्रभक्तीचे झरे निर्माण करत असत. यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है, इसका कंकर कंकर शंकर है, बुन्द बुन्द गंगाजल है हम जियेंगे तो भी इसिके लिए मरेंगे तो भी इसीके लिए।। आपल्या जाज्वल्य राष्ट्रभक्तीपर कवितांमधून देशप्रिती जागृत करणारा या पुण्यपुरूषास 'भारतरत्न' पुरस्कार मिळावयास अंमळ विलंबच लागला खरा, पण काही व्यक्तीमत्वे अशीही असतात, की ज्यांच्यामूळे पुरस्काराचाच सम्मान होतो. अटलजी त्यांतीलच एक होते. अटलजींच्या जाण्याने तमाम हिन्दुस्थानाची जी हानी झाली आहे, तिजला शब्दांत व्यक्त करणे अशक्य आहे. या भरतभूमीच्या सुपुत्रास इश्वर सद्गति देवो व अक्षय्य मोक्ष प्रदान करो, हिच परमात्म्याच्या चरणी प्रार्थना आहे! 
 वन्दे मातरम् 
- सुधांशू सुधीर कविमंडन, 
   बुलढाणा
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आपणास हिंदुवार्ता परिवारात सहभागी व्हायचे असल्यास आपले स्वागत आहे. हिंदुवार्ता हे हिंदूंचे हक्काचे व्यासपीठ असून प्रारंभी अवघ्या २ महिन्याच्या आत आपण २०,००० वाचकांचा टप्पा गाठला होता तर आपल्या साथीने आपण ८० हजारांचा टप्पा पार केला आहे. आपल्या सारख्या असंख्य वाचकांनी सहकार्य केल्यामुळेच हे शिवधनुष्य आपण पेलू शकलो. नवनवीन विषय आणि माहिती आपण कमेंट बॉक्समध्ये अथवा ई- पत्त्यावर कळवू शकता. धन्यवाद
(हिंदुवार्ता परिवार)