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संभाजी भिडेचें सत्य समोर आले ...



                ( महाराष्ट्र सरकार ने संभाजीराव भिडे यांच्या वरील ६ गुन्हे मागे घेतले )




शकील अहमद शेख या आरटीआय कार्यकर्त्यांनी गेल्या दहा वर्षात महाराष्ट्र राज्यशासनाने कोणते गुन्हे माफ केले? हे जाणून घेण्यासाठी या संदर्भात महाराष्ट्र राज्यशासनाकडे एक अहवाल सादर केला होता. या अहवालाच्या उत्तरामध्ये राज्यशासनाने एकूण ४१ राजकीय गुन्हे माफ केल्याचे उघडकीस केले आहे.
(शकील अहमद शेख)
              यामध्ये शिवसेना-भाजप या राजकीय कार्यकर्त्यांसोबतच श्रीशिवप्रतिष्ठान हिंदुस्थान चे संस्थापक - अध्यक्ष संभाजीराव भिडे  यांच्यावरील ६ गुन्हे मागे घेण्यात आले आहेत. संभाजीराव भिडे यांच्या वरील गुन्हे मागे घेण्याची पुष्टी जरी राज्यसरकार ने केली नसली तरीही ते कोणत्याही गुन्ह्यात दोषी सापडले नसल्याची माहिती आरटीआय ने दिली आहे.
           महाराष्ट्राचे अर्थमंत्री सुधीर मुनगंटीवार यांनी या अहवालाबाबत बोलताना सांगितले की, "संभाजी भिडे यांच्यावरील गुन्हे हे केवळ त्यांच्यावरील गुन्हे नसून ते शेकडो सांगलीकरावरील गुन्हे होते, त्यातलेच एक संभाजी भिडे होते." 
             अश्या प्रकारे संभाजीराव भिडे यांच्यासोबतच  अनेक राजकीय नेत्यांना व कार्यकर्त्यांना न्यायालयीन खटल्यातून तात्काळ दिलासा मिळाला आहे. तसेच संभाजीराव भिडेंचा मास्टर माईंड समजल्या जाणारा भगवान श्री कृष्ण याचीच जणू कृपा त्यांच्यावर झाली असे अनेक सामान्य लोकांचे मत आहे. 
    

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शत्रुराष्ट्रनीति

चीन का ग्वादर पोर्ट जाने का रास्ता बलूचिस्तान होकर जाता है और चीन वहाँ पर पाक सेना की सहायता से जनता को मारने का सिलसिला चला रखा है और साथ ही लगभग दो अरब डॉलर का निवेश भी कर रहा है।

अभी चीन को पता चल रहा है कि NSG मुद्दे पर चीन ने भारत को हल्के में लेकर कितनी भारी गलती की है। एक ओर चीन साउथ चाइना सी पर अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहा है I

पिछले दो वर्षो की खामोशी के बाद मोदी जी ने भारत के सभी राजनैतिक दलों को विश्वास में लेते हुए अचानक ही बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) पर बयान दिया, POK को भारत का अभिन्न अंग भी बता दिया I प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दो वर्षो से मोदी जी UNO (संयुक्त राष्ट्र संघ) और NSG में स्थाई सदस्यता के लिए कोशिश कर रहे है, पर चीन हर बार अड़ंगा लगा रहा हैI ऊपर से चीन भारत को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान का साथ भी दे रहा है और POK और बलूचिस्तान में अपने लाभ और भारत को घेरने के लिए निर्माण कार्य भी कर रहा हैI
अन्तराष्ट्रीय न्यायलय में एशिया क्षेत्र में साऊथ चाइना सी वाला हिस्सा (अधिकार) भी हार गया है, और अब वो चाहता है की भारत उसका साथ दे, इसीलिए चीन ने अपने विदेश मंत्री वांग यी को दिल्ली भेजा, और साथ में सन्देश भी भेजा कि NSG के मार्ग अभी बंद नहीं हुए हैंI

भारत के वर्तमान नेतृत्व ने इसी समय का लाभ उठाया, और POK (पाक अधिकृत कश्मीर) को भारत का अभिन्न अंग बता दिया और बलूचिस्तान के हितों की रक्षा करने और पाकिस्तान से आजाद करवाने के लिए विश्व को संदेश भी दे दिया। और चीनी विदेश मंत्री भारत दौरे पर ग्वादर पोर्ट सिलसिले में समर्थन माँगने पहुँचे, वही दूसरी और मोदी जी ने सीधे POK की बात उठा कर चीन को बता दिए की NSG छोडो, POK पे हमारा समर्थन करो।

हिंदुस्थान के इस कुटनीतिक निर्णय से पूरी दुनिया हैरान है, चीन चारो और से फंस गया है। चीन NSG के बदले समर्थन की उम्मीद कर रहा था लेकिन जो दांव  भारत की शत्रुराष्ट्रा नीति ने चला है, उससे चीन गले में हड्डी अटक जाने का अनुभव कर रहा हैं ।
POK पे समर्थन का मतलब ग्वादर को भूल जाओ। और भारत से नाराजगी मतलब वियतनाम जापान जैसे अन्य देशों को भारत का समर्थन और साउथ चाइना सी से चीन का अधिकार समाप्त।

बलूचों ने उखाड फेंका पाकिस्तानी झण्डा।

चाणक्यनीति : जब शत्रु कमजोर हो तब उस पर वार करो।

वर्तमान नेतृत्व की सोची समझी रणनीति।

अब चाइना असमंझस में पड़ गया कि POK को पाकिस्तान का अंग बता कर पाकिस्तान की सहायता की जाए या NSG मे भारत की स्थाई सदस्यता देकर अपने साउथ चाइना सी विवाद को सुलझाया जाए, भविष्य में जो भी कुछ हो। पर मैं इतना जानता हूँ कि भारत का वर्तमान नेतृत्व  मुँह से चाहे कुछ न बोले पर अपने दुश्मन को कब कैसे और कहाँ मारना है वो ये अच्छी तरह जानते है। इसको कहते है जले पर नमक छिड़कना।

जो कांग्रेस ६० वषों मैं नहीं कर सकी ,भारत के वर्तमान नेतृत्व ने २ वर्षों में कर दिया, परराष्ट्रनिति एवं शत्रुराष्ट्रनीति का उचित उपयोग करने के लिए वर्तमान सरकार को मेरा ..!! 
साधुवाद

                                                                                                                                      विशाल सुरेश शर्मा 
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जीता जागता राष्ट्रपुरुष है...



(आज पासून 'हिंदू वार्ता' वर हिंदीतून हि लेख वाचायला मिळतील )



(प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अनन्यसाधारण महत्व अटल जी के लिए था,संघ स्वयंसेवक के रूप "राष्ट्र सर्वोपरि" की विचारधारा अटल जी आत्मसात कर चुके थे)


एक चारित्र्यवान हिंदू, राष्ट्रधर्म भक्ती को अपने अंतरमन में संजो कर औऱ सनातन हिंदू धर्म एवं संस्कृत के मुल्यों का संवाहक बन जब राजनीती में आता है, तब उस व्यक्ती को वही स्थान प्राप्त होता है जो आज आदरणीय अटलबिहारी वाजपेयी जी को प्राप्त है, गांधी और नेहरू परिवार द्वारा भारत के राजनैतिक नेतृत्व को एकाधिकार मान वंशवाद, परिवारवाद एवं अपने व्यक्तिगत मूल्यों को राष्ट्र से ऊपर मानने वाली मानसिकता को अटल जी के सक्रिय राजनैतिक प्रवेश ने एक बहोत बड़ी चुनोती प्रस्तुत की, अटल जी मे यह चुनोती दे पाने का सामर्थ्य तत्कालीन परिस्थितियोने कूट कूट कर भर दिया था, अटल बिहारी वाजयेपी १९४२ में उस वक्त राजनीती में आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई २३ दिनों के लिए जेल गए। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु क्या मुल्य हम हिन्दुस्थानियों को चुकाना पड़ा है इस बात का ज्ञान युवा अवस्था मे ही अटल जी को हो चुका था, इस कारण उस अर्जित स्वतंत्रता  एवं उसके द्वारा प्रदत्त प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अनन्यसाधारण महत्व अटल जी के लिए था, संघ स्वयंसेवक के रूप में "राष्ट्र सर्वोपरि" की विचारधारा अटल जी आत्मसात कर चुके थे। १९५१ में वाजपेयी जी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए। १९५७ में अटलजी बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। १९६८ में वो राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने। यह वो समय था जब पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पुण्यप्रताप के बल से भारत की मलिन राजनीती को राष्ट्रनीती में परिवर्तित करने का प्रयास अटलजी द्वारा होने लगा था। 





 अटलजी के राजनैतिक जीवन का उद्देश्य क्या था यह समझने के लिए उनका यह कथन पर्याप्त है कि
        "सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आऐंगी जाऐंगी, पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी,  मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए यह प्रजातंत्र अमर रहना चाहिए"।
राष्ट्रीयचारित्र्य विहीन राजनीति को इस राष्ट्र का महत्व समझाते हुए, "हिंदुत्व अर्थात राष्ट्रीयत्व" के भाव से सराबोर अटल जी ने जब 

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये...

इस तरह अपने राष्ट्र का मुल्य समझाया तब इस राष्ट्र की राजनीती में, राष्ट्रोद्धार राष्ट्रोन्नती जैसी संकल्पनाएँ अस्तिव में आने लगी ।
अटल जी अपना राजनैतिक जीवन ऐसे अजातशत्रु की तरह जिये कि उनके प्रबल विरोधियों को भी उनसे मोह होने लगता था । अटल जी के राष्ट्रवाद का स्तर क्या था?
    १९७२ के युद्ध में विपक्ष में होने के बाद भी अटल जी तत्कालीन सत्तापक्ष के साथ राष्ट्रहित में एक सहयोगी की भूमिका में नजर आए, वहीं नरसिम्हाराव सरकार ने अपने विरोधी राजनैतिक दल के नेता अर्थात श्री अटलजी को
 संयुक्तराष्ट्र सभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा, ऐसे अनगिनत प्रसंग हैं जहाँ विपक्ष में होने के बाद भी अटल जी ने तत्कालीन सरकार के उन सभी मुद्दों का समर्थन किया, जो देशहित में थे और यही कारण है कि आज विरोधी राजनैतिक दल का प्रत्येक नेता यह निर्विवाद स्वीकार करता है कि अटलजी की राजनीति का मूलाधार राष्ट्रहित था।
   मुझे लगता के भविष्य में इस राष्ट्र की राजनीती को हिंदुत्व को आधार मानकर ,राष्ट्रनीती में परिवर्तित करने का प्रयास यदि हो तो अटल जी द्वारा परिभाषित-
            "हिन्दू धर्म के प्रति मेरे आकर्षण का मुख्य कारण है कि यह मानव का सर्वोत्कृष्ट धर्म है। हिंदू धर्म न तो किसी एक पुस्तक से जुड़ा है और न ही किसी एक धर्म प्रवर्तक से जुड़ा है, जो कालगति के संग असंगत हो जाते हैं। हिन्दू धर्म का स्वरूप हिन्दू समाज द्वारा निर्मित होता है और यही कारण है कि यह धर्म युग-युगांतर से संवर्धित और पुष्पित होता जा रहा है।" 
-विशाल सुरेश शर्मा, मलकापूर  


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तुमची गरज आहे ..!!!



(आपल्याला तिथे जाणे शक्य नसले तरी त्यांच्या मार्फत आपण काही वस्तू पोहचवु शकतो)


गेल्या काही दिवसांपासून आपल्या शेजारील राज्यावर मोठी आपत्ती आली आहे. ती आपत्ती म्हणजे 'केरळ महापूर'. यासाठी सरकारने संपूर्ण यंत्रणा तत्काळ कार्यरत केली आहे. परंतु या देशाप्रती आणि समाजाप्रती आपण ही काहीतरी देणे लागतो. नेहमी आपण माणुसकी धर्म महत्त्वाचा अश्या प्रकारचे वक्तव्य सहज करतो. पण ज्यावेळी ते सत्यात उतरवण्याची वेळ येते त्यावेळी मात्र मागे सरतो. आज केरळ मध्ये महापूर आल्यावर अशीच सामाजिक जाणिवा असलेले व्यक्ती पुढे सरसावतात. अश्याच एका व्यक्तीने आज आपले कर्तव्य पूर्ण करण्यास एक पाऊल पुढे टाकले आहे. त्यांचे नाव आहे, डॉक्टर रविंद्र मराठे. ते फूड आर्मी एनजीओ मार्फत सोमवारी संध्याकाळ पर्यंत मदत पोहचवणार आहेत. सोमवारी काही वस्तूसकट एनजीओ केरळमध्ये मदत करण्यास जाणार आहेत. त्यांनी त्यांचे कर्तव्य पूर्ण करण्यास तयारी दाखवली पण आपले काय? 
    आपल्याला तिथे जाणे शक्य नसले तरी त्यांच्या मार्फत आपण काही वस्तू पोहचवु शकतो. त्यासाठी त्यांनी आवाहन केले आहे. खाली दिलेल्या फोटो प्रमाणे त्यांना खाद्यपदार्थचे पाकीट पोहचवावे. 


अधिक माहितीसाठी संपर्क- 
डॉक्टर रविंद्र मराठे
 ९२२११०७२३६

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खाली राख नाही वर धूर नाही....

श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदूस्थानचे संस्थापक आदरणीय श्री संभाजीराव भिडे गुरूजी यांनी अटल बिहारी वाजपेयींच्या  पवित्र स्मृतीस अभिवादन करून श्रद्धांजली देताना त्यांच्या राष्ट्रीप्रेमाविषयी सांगताना पुढील उद्गार काढून श्रद्धांजली अर्पण केली. 
''हे अति अति अति दुःखाची गोष्ट आहे. ही वार्ता ऐकल्यानंतर संबंध देशातल्या सगळ्याच लोकांच्या अंतकरणाला आपल्या घरातलं कोणीतरी गेला असच वाटतंय. आयुष्य ते जगले ते भारतमातेच्या पूजेसाठीच जगले. त्यांचा असा विश्वास होता की देशसेवा आणि भारतमातेची सेवा याच्यात फरक नाहीये. 
जे कशासाठी वेली तरू फुल घ्यावे ।
स्वतः जीवनाच्या फुलांनी पुजावे ।।
असंख्यात पुष्पे हवी पूजनाला ।
म्हणा अर्पिला देह हा मायभूला ।। 
या कठोर व्रताच आचरण करणारं त्यांच जीवन होतं. ते कर्मवंत होते, ज्ञानवंत होते, शिलवंत होते, बुद्धिवंत होते, आणि मुख्य म्हणजे भारतमातेचे विलक्षण कर्तबगार असे सुपुत्र होते. त्यांनी दाखवलेल्या मार्गानी हा देश नेण्याचं उत्तरदायित्व भगवंताने तुम्हा आम्हा सर्वांवरती सोपवलेला आहे. 
अग्नी कर्पूराचे मेळी । काय उरली काजळी ।।
तुका म्हणे होती । तुझी माझी एक ज्योती ।। 
अग्नी आणि कापूर एकत्र आल्यानंतर खाली राख नाही वर धूर नाही, प्रकाश आणि सुंगध देऊन निघून जावं तसच त्यांचं जीवन आपल्यासमोर प्रत्यक्ष ते जगले ते आपण पाहतो. तो आदर्श घेऊन  भविष्यात सगळ्या उगवत्या पिढीतल्या तरुणांनी जगावं आणि या भारतमातेला विश्वाचा बाप बनण्याची ताकद द्यावी असं भगवंताच्या पायाशी मागून मी त्यांना श्रद्धांजली वाहतो. विनम्र प्रार्थना करतो. "
असं म्हणून त्यांनी या देशाचे माजी पंतप्रधान व भारताच्या राजकारणात भीष्म पितामह तसेच अजात शत्रू म्हणून ओळखल्या जाणारे अटल  बिहारी वाजपेयी यांना दाटलेल्या कंठानी भावपूरनी आदरांजली अर्पण केली.
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"हारा हुआ वाजपेयीं कैसे दिखता है, ये देखने आये हो"

          ज्यावेळी भाजप निवडणुकीत एका मोठ्या पराभवाला समोरा गेला, त्यांनतर एका सभेत मंचावरती भाजपचे काही उमेदवार आणि नेते उपस्थित होते. त्यांचे नेतृत्व 'अटल बिहारी वाजपेयी' करत होते. मंचावरती ध्वनिक्षेपकासमोर जमलेल्या संपूर्ण जनसमुदायावरती एक नजर फिरवत मोठा श्वास घेऊन भाषणाला 'अटलजींनी' सुरवात केली, 
    "क्यो आये हो आप यहा? 
आप किसीं के सभा मे नही आए हो, 
आप हारा हुआ वाजपेयीं कैसे दिखता है, 
 ये देखने आये हो"
    असा संवाद करून जमलेल्या लोकांच्या काळजाला हात घालून आपल्या अभिभाषणाला त्यांनी सुरवात केली.
    आज दिनांक १६ ऑगस्ट २०१८, रोजी सायंकाळी 'अटल बिहारी वाजपेयी' यांनी डोळे मिटून आपला प्रवास थांबवला. ही बातमी ज्यावेळी समजली त्यावेळी त्यांचे हे शब्द कानात घुमायला लागले. अन् अश्रूंनी डोळ्यांच्या कडा पानवल्या. आज आपल्यातून केवळ राजकीय नेताच नाही तर देशा-धर्माला वाहिलेला नेता, एक प्रभावशाली, नेतृत्वाशाली नेता तसेच प्रत्येक हिंदुस्थानीच्या मनात असलेला आधारस्तंभ निखळला. एक राजकीय नेता, एक पत्रकार, एक लेखक, एक कवी, आणि उत्कृष्ट वक्ता आज हिंदुस्थानने गमावला. 'अटलजींच्या कार्य-कर्तृत्वाबद्दल लिहावे तितके कमीच. आज श्रीकृष्ण च्या काही ओळी आठवतात, 
    परित्राणाय साधूनाम विनाशायच दुष्कृताम । 
    धर्म संस्थापणार्थाय संभवामि युगे युगे ।।

ज्यावेळी धर्मावर आघात होतो त्यावेळीच प्रत्येक युगात गरजा पूर्ण करणारा नेता नियतीनुसार तयार होतो. आणि हिंदुस्थानसाठी अटल बिहारी वाजपेयी हा काळाने लोकांना अर्पण केलेला नेता होते. ते राजकारणी म्हणून सुजाण होतेच. श्री कृष्णांच्या वाक्याप्रमाणे जनतेबद्दल जिव्हाळा आणि सामान्याबद्दल आपुलकी असलेला नेता होते. 
     अटलजींचा जन्म २५ डिसेंबर १९२४ साली झाला. त्यांच्या पत्रकार, लेखक, वक्ता आणि नेता अश्या अनेक छटा होत्या. स्वातंत्र्यानंतर देशभरात घराणेशाहीचे राजकारण असताना एका सामान्य घरातून आलेले 'अटलजी' २०व्या शतकाच्या अखेरीस आणि २१ व्या शतकाच्या प्रारंभी म्हणजेच १९९६ साली हिंदुस्थानचे दहावे पंतप्रधान झाले. त्यांनी भारतीय जनसंघाची स्थापना केली, तसेच भारतीय जनता पार्टीच्या जडणघडणीत त्यांचा मोलाचा सहभाग होता. १९६८ ते १९७३ पर्यंत त्यांनी भारतीय जनसंघाचे अध्यक्षपद ही भूषविले. ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघाचे प्रचारक होते. तसेच राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य, वीर अर्जुन या राष्ट्रीय भावना असलेल्या पत्रकांचे संपादक पद ही भूषविले. त्यांची राजकीय भूमिका प्रखर आणि स्पष्ट होती. त्याकाळी सोनिया गांधीविरोधात बोलणारे एकमेव अटलजी होते, १९ ऑगस्ट २००३ साली ज्यावेळी सोनिया गांधी यांनी 'अविश्वासाच्या ठरावाचे' षड्यंत्र रचले त्यावेळी आप पाच मिनिटं मे आपणा बाल नही ठीक कर सकती, हमसे कैसे निपटोगी? असे खडे बोल सुनावले. १९८८ मध्ये त्यांनी एक भविष्यवाणी केली होती, संपूर्ण देश भाजपाला उपहासात्मक नजरेने बघेल पण त्यावेळी पूर्व भागात कमळ फुललेले असेल. ही भविष्यवाणी आसाम आणि पूर्वांचलाच्या विजयाने खरी ठरली. तसेच १९९६ साली पाहिलेली प्रत्येक स्वप्न नरेंद्र मोदींच्या रुपात पूर्ण होताना त्यांनी पाहिली आहेत. म्हणून ते पंतप्रधान नरेंद्र मोदींचे राजकीय गुरू संबोधले जातात.
     ते देशाचे राष्ट्रनिष्ठ नेता होतेच तसेच त्यांचे साहित्य धर्मप्रेमा ने वाहिले होते. त्यांच्या हर एक कवितेत धर्म आणि राष्ट्राचे प्रकट दर्शन होते. त्यांच्या कविता पुढे संसदेत मत मांडताना वापरल्या गेल्या. ज्यावेळी जेएनयूच्या विद्यार्थ्यांनी 'भारत मुर्दाबाद' च्या घोषणा दिल्या. त्यावेळी स्मृती इराणी नी त्यांच्या कवितेने संसदेतील नेत्यांची बोलती बंद केली, ती कविता अशी की, 
     भारत कोई भूमी का तुकडा नही है,
     एक जिता जागता राष्ट्रपुरुष है । 
     ये वंदन की धरती है, अभिनंदन की धरती है ।
     ये अर्पण की भूमी है, ये तर्पण की भूमी है ।
     इसकी नदी नदी हमारे लिए गंगा है, 
    इसका कंकड कंकड हमारे लिए शंकर है ।
     हम जिएंगे तो इस भारत के लिए, 
     और मरेंगे तो भी इस भारत के लिए ।
     बेहती हुई अस्तियो को कोई कान लगाकर सूनेगा 
     तो एक ही आवाज आयेगी, भारतमाता की जय ।।

ते राष्ट्रच्या बाबतीत द्रष्टे होते. गझणीचा इतिहास त्यांनी किशोरवयात वाचला होता. त्यामुळे त्यांचे हृदय गझणीच्या आक्रमनाणे फार विरघळून जाई. त्यांच्या मनावर आज ही त्या जखमा होत्या. अफगाणिस्तान, इंडोनेशिया च उदाहरण ते नेहमी आपल्याला देत. त्या देशाचे परिवर्तन जरी इस्लाम मध्ये झाले तरी ही आज ही तिथे श्री रामाचं अस्तित्व आढळतच नाहीतर तेथिल लोकं आज ही आपला पूर्वज श्री राम असल्याची कबुली देतात. ही गोष्ट त्यांनी हिंदुस्थाना समोर आणली आणि श्री राम जन्मभूमीसाठी त्यांनी अतोनात प्रयत्न केले. सोरटी सोमनाथ मंदिराच्या उभारणीतही त्यांचा हात होता. धर्मासोबत राष्ट्र ही महत्वाचे मानले. म्हणून पोखरणची चाचणी यशस्वीपणे त्यांनी पूर्ण केली. 
    धर्म-राष्ट्रासाठी खळखळून वाहणारा पांढरा शुभ्र झरा आज थांबला. आज प्रत्येकाच्या मनावर त्यांच्या कविता कोरल्या आहेत. त्यांच्या बद्दल लिहावे तितके कमीच. पण शेवट करताना त्यांच्या ठन गई! मौत से ठन गई! या कवितेतील ओळी आठवतात त्या म्हणजे, 
 
जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, 
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? 

....अटलजी आज तुमचे पर्व संपले नाही तर थांबले, तुम्हाला ते सुरू करण्यास पुन्हा जन्म घ्यावा लागेलच...!!!

'अटल बिहारी वाजपेयींना' हिंदू वार्ता समूहातर्फे भावपूर्ण श्रद्धांजली..!!!

-संपादकीय

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स्वर्गे तिष्ठतु पुण्यात्मा



         हिन्दुस्थानच्या आधुनिक इतिहासाचा विचार करता, गेल्या विसाव्या शतकाच्या उत्तरार्धातील प्रमुख राजकीय नेत्यांच्या मांदियाळीतील अबाधित स्थान माजी पंतप्रधान दिवंगत भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयीजी यांचे आहे. अटलजी हे त्या मोजक्या राजकारण्यांपैकी होते, ज्यांनी राष्ट्रभक्तीचा दिपक आपल्या चित्तांत सदोदित प्रज्वलीत ठेवला. त्यांच्या देशप्रेमास, राष्ट्रभक्तीस तुलना नाही. आपल्या जीवनाच्या अंतकालापूर्वी बरीच वर्षे ते आजारी होते, पण तरीही 'अटलजी आहेत' ही बातमीच प्रचंड धीर देणारी होती. ग्वाल्हेरास पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयीजी यांचे घरात अटलजींचा दि.२५डिसेंबर१९२४ रोजी जन्म झाला. त्यांच्या अंगी उपजतच नेतृत्वाचे गुण होते. प्रारंभी कुमार सभा व आर्य समाजापासून त्यांच्या नेतृत्वास व कार्यास सुरूवात झाली. पुढे आपल्या प्रखर विद्वत्ता व कुशाग्र बुध्दीमत्तेच्या जोरावर त्यांनी संस्कृत व हिंदीत उत्कृष्ट गुणांनी पदवी संपादन केली. बाबासाहेब आपटे यांच्या प्रभावाने अटलजी संघप्रवाहात आले. सन १९३९ मध्ये त्यांचा संघाशी परिचय झाला. राष्ट्रभक्तीने ओतप्रोत भरलेले अटलजी व त्यांचे ज्येष्ठ बंधू तेवीस दिवसांसाठी चले जाव आंदोलनात तुरूंगात गेले. पुढे त्यांची मुक्तता करण्यात आली. उत्तर प्रदेशात विस्तारक म्हणून गेलेले अटलजी पं. दिनदयालजी उपाध्याय यांचे संपर्कात आले व त्यांच्या पत्रांमध्ये लेखन करू लागले. सन १९५१ मध्ये ते भारतीय जनसंघाचे कार्यकर्ते बनले. पुढे पं.श्यामाप्रसाद मुखर्जी यांचे सह काश्मिरप्रश्नी पंडीतजींबरोबर १९५४ मध्ये उपोषणास बसले होते. पंडितजींचा या आंदोलनादरम्यान अंत झाला. त्यानंतर भारतीय जनसंघास अटलजींनी वाहून घेतले. आपली प्रथम निवडणूक सन १९५७ मध्ये बलरामपूर येथे ते जिंकले. पुढे या महापुरूषाने खस्ता खाल्ल्या परंतु मागे वळून पाहीले नाही. 
        १९७५-७७ दरम्यान आणिबाणीच्या कालावधीत इतर विरोधीपक्षांच्या नेत्यांसह अटलजी तुरूंगात होते. सन १९७७ च्या निवडणूकीतील विजयानंतर
अटलजी मोरारजी देसाईंच्या मंत्रीमंडळांत परराष्ट्रमंत्री म्हणून पदाधीष्ठित झाले. अभिमानाची बाब ही, की संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या सभेत भाषण करणारे ते प्रथम भारतीय होत. त्याग तपस्येमूळे अटलजी लवकरच भारतीयांच्या गळ्यातील ताईत झाले. सन १९८० साली भारतीय जनता पक्षात आपल्या सहकाऱ्यांसह प्रविष्ट होवून अटलजी भाजपचे प्रथम अध्यक्ष बनले. या पक्षाने पुढे अनेक कार्ये सिध्दीस नेली. सन १९९६ साली ते तेरा दिवसांकरिता पहिल्यांदा प्रधानमंत्री बनले. तेरा दिवसांनी त्यांनी पदत्याग केला. १९९८-९९ ला दुसऱ्यांदा तर १९९९ -२००४ या कालावधीत तिसऱ्यांदा अटलजींनी पंतप्रधानपदाच्या आसनास सुशोभित केले. या सर्व कालावधीदरम्यान अनेक अभिमानास्पद घटना घडल्या, अनेक दु:खद घटनाही घडल्या परंतु अटलजींच्याच, 'ना हार मे ना जित मे किंचीत् नही भयभीत मै' या ओळींनुसार आपले धैर्य त्यांनी कधीच सांडले नाही. पोखरण च्या अणूस्फोटात असो वा कारगीलच्या समरात, वा गुजरातच्या भूकंपात, अटलजींनी संपूर्ण धैर्याने कार्य केले. त्यांनी आपल्या सेवाकार्यास एकनिष्ठेने पार पाडले.
       हिन्दुस्थानचा हा प्रधानमंत्री कडवा राष्ट्रभक्त होता, परंतु हळव्या कवीमनाचा होता. चंद्राच्या शितल छायेसारखा शांत होता. ते आपल्या काव्यातून ठायीठायी राष्ट्रभक्तीचे झरे निर्माण करत असत. यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है, इसका कंकर कंकर शंकर है, बुन्द बुन्द गंगाजल है हम जियेंगे तो भी इसिके लिए मरेंगे तो भी इसीके लिए।। आपल्या जाज्वल्य राष्ट्रभक्तीपर कवितांमधून देशप्रिती जागृत करणारा या पुण्यपुरूषास 'भारतरत्न' पुरस्कार मिळावयास अंमळ विलंबच लागला खरा, पण काही व्यक्तीमत्वे अशीही असतात, की ज्यांच्यामूळे पुरस्काराचाच सम्मान होतो. अटलजी त्यांतीलच एक होते. अटलजींच्या जाण्याने तमाम हिन्दुस्थानाची जी हानी झाली आहे, तिजला शब्दांत व्यक्त करणे अशक्य आहे. या भरतभूमीच्या सुपुत्रास इश्वर सद्गति देवो व अक्षय्य मोक्ष प्रदान करो, हिच परमात्म्याच्या चरणी प्रार्थना आहे! 
 वन्दे मातरम् 
- सुधांशू सुधीर कविमंडन, 
   बुलढाणा
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सार्थ श्री तिलकसूर्यहृदय स्त्रोत्रम





*सार्थ श्रीतिलकसूर्यहृदय स्तोत्रम्*
श्री गणेशाय नम:।
श्री रामाय नम:।
श्री स्वातन्त्र्यदेवतायै नम:।

अथ ध्यानम्।
अम्बा भारतभूमिभालतिलकं राष्ट्रस्य उध्दारकम्।
सञ्जातो निजलोकभारहरणे यो भूतले कोङ्कणे।।
यो वास: अकरोत् प्रधाननगरे: कल्याणहेतो: जना:।
तं वन्दे प्रभु देशवीर द्विजवर् श्रीलोकमान्याभिदम्।।

अर्थ:
(ध्यानाचा श्लोक)
आई भारतभूमीच्या भालावरील तिलक (म्हणूनच शोभणारे), राष्ट्राचा उध्दार करणारे, जे आपल्या लोकांचा भार (गुलामगीरीचा) हरण्यासाठी भूतली कोंकणांत (रत्नागीरीत) जन्मले, ज्यांनी प्रधानांच्या (पेशव्यांची नगरी म्हणून नावाजलेल्या पुण्यात) नगरीत जनांचे कल्याण करण्यासाठी वास केला, त्या देशवीर श्रेष्ठ देशवीर लोकमान्यांना वन्दन असो.
(हा श्लोक शार्दुलविक्रिडीतांत आहे).

इति ध्यानम्।
नमस्ते केसरि: मूर्ते नमस्ते गणितप्रियम्।
नमस्ते धर्मविद् विद्वान् लोकमान्य नमोsस्तुते।।

अर्थ:
सिंहाचीच (जणू) मूर्ति असणार्या, गणित ज्यांना प्रिय होते अशा, धर्मज्ञाते असणारे विद्वान लोकमान्यांना नमस्कार असो.
************

नमस्ते राष्ट्रभक्ताय वेदान्ताध्ययनाय च।
नमस्ते मातृकार्यार्थे अर्पिताय तनु नीज।।

अर्थ:
राष्ट्रभक्ताला आणि वेदान्ताचे अध्ययन करणार्याला नमस्कार असो. (तसेच) मातृभुमीच्या कार्यासाठी स्वत:चे शरिर अर्पण करणार्याला नमस्कार असोत.
************

नमोस्तु बलवान् देही नमस्तेsस्तु जनप्रियम्।
य: प्राप्तवान् स्वकर्मेण उपाधि: 'लोकमान्य'धि:।।

अर्थ:
बलदंड देहयष्टीचे स्वामी, लोकांना प्रिय असलेल्यांना नमस्कार असोत. ज्यांनी स्वत:च्या कर्मांनी आपल्याला लोकमान्य ही उपाधी मिळवून घेतली.
**************

स्थापको डेक्कनसंस्थायां पञ्चाङ्गं रचिताय च।
खगोले कार्य कृतवान् य: तं नमामि महामुनिम्।।

अर्थ:
डेक्कनसंस्थेचे संस्थापक, पंचांगाचे (टिळक पंचांग) रचयिते ज्यांनी खगोलशास्त्रांत कार्य केले त्या महामुनींना नमस्कार असो.
******************

सहाय्यकश्च क्रान्तीणां नेमस्ताणां विरोधक:।
नमामि तेजमूर्तिश्च नमामि वेदविद् विभो।।

अर्थ:
क्रांतीचे (क्रांतीकारकांचे) सहाय्यक, मवाळांचे विरोधक, तेजाचीच जणू मूर्ति अशा वेदज्ञ विभूतीस नमस्कार असोत.
***************

पत्रेषु ताडितं येन आंग्ललोका: स्वभाषया।
नमामि केसरिकारं पुण्यपत्तन भूषणम्।।

अर्थ:
पत्रांत (वृत्तपत्रांत) ज्यांने इंग्रजजनांना आपल्या स्वभाषेतून सुनावले, त्या पुण्याचे भूषण असणार्या केसरीकर्त्यांना नमस्कार असोत.
**************

भाष्यकाराय वन्देहं गीताज्ञानं प्रकाशकम्।
नुतनर्थं प्रदत्तं यो: नमामि लोकमान्यपाद्।।

अर्थ:
गीतेचे ज्ञान प्रकाशित करणार्या टिकाकारांना वन्दन असो. ज्यांनी (गीतेचा) नवा अर्थ दिला, त्या लोकमान्यांच्या चरणांना नमस्कार असो.
***************

स्वत्ववृध्दि: तत्वप्रिति: कार्यतत्परप्रत्यया।
पठामि चरितं भगवन् स्वाभिमानस्य वृध्द्यया।।

अर्थ:
स्वत्वाची वाढ, तत्वाबद्दलचे प्रेम (तत्वपालन) कार्यतत्परतेच्या अनुभवासाठी, स्वाभिमानाच्या वाढीसाठी हे भगवन्, मी आपल्या चरित्राचे पठण करतो.
*************

अष्टश्लोका: पाठयित्वा लोकमान्यस्तुतिपरम्।
देशभक्ते तु प्राविण्यं सदैवं प्राप्त स: भवेत्।।

अर्थ: 
लोकमान्यांची स्तुति करणार्या या आठ श्लोकांचा पाठ करणार्यास देशभक्तीत नेहमीच प्राविण्य मिळते.

नित्यनैमित्तिका पूजा स्तोत्रेण लोकमान्यया।
करोति तस्य मेधा: कुशाग्रो भवति सर्वदा।।

अर्थ:
(या) स्तोत्रानें लोकमान्यांची दररोज पूजा करणार्याची बुध्दी तिक्ष्ण (कुशाग्र) होईल.
**************

कौण्डिण्यगोत्रभृत् अस्मि कुलेषु कविमण्डने।
प्रार्थयामि भवान् दास: सुधांशू: सुधीर: सुतम्।।

अर्थ:
मी कौंडिण्य गोत्रात जन्मलेलो कविमंडन कुळातील सुधीर यांचा मुलगा सुधांशू आपला (लोकमान्यांचा) दास आपणांस प्रार्थना करित आहे.

इति श्री तिलकसूर्यहृदयस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।
(असे हे श्री तिलकसूर्यहृदय स्तोत्र पूर्ण झाले)
©सुधांशू सुधीर कविमंडन
(कृपया प्रस्तुत काव्य कविचे नांवासहच शेअर करावे)
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मला देवाचे दर्शन घेऊ द्या - चिंतन आणि रसग्रहण


(जातीजातीमधील भेद जरी नष्ट होत गेला असेल तरी समाजात अजूनही भेद आहे. हे मात्र लक्षात घेतले पाहिजे. सावरकरांनी या भेदावर आसूड ओढलंय. पण ते आसुड ओढताना सावरकर हिंदु समाजाच्या आईच्या भूमिकेत होते मित्रांनो )





अनेक समाज सुधारकांप्रमाणे स्वा. सावरकरांनी अस्पृश्य प्रथेच्या विरोधात लढा दिले. सावरकर हिंदुत्ववादी होते आणि ब्राह्मण होते म्हणून त्यांच्याकडे भारतातीय स्वतःस पुरोगामी म्हणवून घेणार्‍या लोकांनी त्यांचे कार्य नाकारले व त्यांच्यावर गलिच्छ टिका केली. सावरकरांचे सबंध साहित्य आज उपलब्ध आहे. सावरकर हे एक महापुरुष आहेत ज्यांना मानणारे अनेक वैचारिक वर्ग आहेत. स्वतःला नास्तिक म्हणवून घेणारे लोक सावरकरांना नास्तिक मानतात आणि आपली नास्तिकता किती योग्य आहे हे दाखवण्यासाठी सावरकरांची उदाहरणे देतात. पु.ल. देशपांडेंसारख्या थोर साहित्यिकालाही सावरकरांच्या या विचारांनी भुरळ घातली. त्यांनाही सावरकर नास्तिक वाटतात. राजकीय नेते शरद पवार सुद्धा सावरकरांनी गाईला देव मानले नसून उपयुक्त पशू मानले आहे असे आवर्जून सांगतात. एरव्ही सावरकर विचार गुंडाळून ठेवलंत असले तरी हे मात्र त्यांना पटतं. तुम्ही सबंध सावरकर चरित्राचा जेव्हा अभ्यास करता तेव्हा तुमच्या लक्षात येतं की या सर्वांपेक्षा सावरकर खुप पुढे गेले आहेत. हा सर्व अट्टाहास हिंदुंचे संघटन करण्यासाठी होता. हिंदुंवर टिका करुन मजा घेण्यासाठी नव्हता. हे मात्र कुणी लक्षात घेत नाही. त्यांनी नास्तिक, गाय ही उपयुक्त पशू आहे या पलीकडे सावरकर गेले आहेत. सावरकर हे अध्यात्मिक पुरुष होते असंही त्यांना जवळून ओळखणार्‍यांचं म्हणणं आहे. 'ॐ, स्वास्तिक, कुंडलिनी, कृपाण, आणि भगवा रंग असलेला चिन्हांकीत पताका हिंदुराष्ट्राचा ध्वज सावरकरांच्या सुचनेनुसार अखिल भारतील हिंदुमहासभेने १९३६ मध्ये स्वीकारला. ही चिन्हे हिंदु धर्माचे प्रतीक असले तरी ही अध्यात्मिक चिन्हे आहेत.

ते योगसाधना करायचे, बारीची मुलगी जेव्हा सावरकरांना अंदमानच्या कोठडीत भेटायला आली तेव्हा तिने असा उल्लेख करुन ठेवला आहे की जेव्हा बारीची मुलगी तुरुंगातून जात होती तेव्हा तिला पाहायला अनेक कैदी आसुसलेले होते. ती अतिशय गोरीपान व सुंदर सोळा वर्षांची नवतरुणी, तिला सावरकरांना ठेवलेल्या कोठडीपाशी आणण्यात आलं तेव्हा सावरकर ध्यान करीत बसले होते. बारीची मुलगी लिहिते की सावरकर एखाद्या भारतीय योग्यासारखे दिसत होते. पुढे पुढे लिहिते की त्या दिव्य पुरषाला पाहून माझे वीर्यस्खलन झाले. अशा प्रकारचा उल्लेख प्रदीप दळवी ह्यांनी त्यांच्या त्रिनेत्र या कादंबरीत केलेला आहे. सावरकरांनी अस्पृश्यांना न्याय मिळावा म्हणून जीवाने रान केले. स्वतःवर अन्याय झालेला असताना पेटून उठणे आणि स्वतःवर काहीएक अन्याय न होता त्यासाठी झटणे यात फरक आहे. तुलना करायची नाही. परंतु यामुळे विषय समजून घेता येईल. आपण शाहू फुले आंबेडकरांची नावे घेतो, ते त्यांनी रंजल्या गांजल्यांसाठी कार्य केले म्हणून. तेच कार्य कार्य सावरकरांनी केले तर ते टाकाऊ ठरते. हा पुरोगाम्यांचा आणि पुरोगामी महाराष्ट्राचा खरा चेहरा आहे. मुख्यमंत्र्यांना विठ्ठलाचे दर्शन घेण्यापासून रोखले गेले हा पुरोगामी महाराष्ट्राचा खरा चेहरा आहे. निखिल वागळे हे अनेक पुरोगामी लोकांचे आदर्श पत्रकार आहेत. ते मुख्यमंत्र्याचा उल्लेख पेशवाई असा करतात. हा पुरोगामी महाराष्ट्रचा खरा चेहरा आहे. 

सावरकरांनी अनेक गीत लिहिले. आपली चळवळ त्यांनी साहित्यातून उतरवली आहे. हिंदूंचे संघटन करायचे असेल तर हिंदुंमधील जातीभेद नष्ट झाला पाहिजे. आपल्याच एका समाजावर अन्याय होताना पाहून सावरकर तळतळतात. त्यांनी रत्नागिरीत अस्पृश्य निवारणाचे जे कार्य केले आहे ते अतुलनीय आहे. पण मगाशी सांगितल्याप्रमाणे त्यांनी ब्राह्मण जातीत जन्म घेऊन खुपच मोठी चुक केली. ते ब्राह्मणेत्तर समाजाचे असते तर कदाचित त्यांचे योगदान आपण नाकारले नसते. रत्नागिरीत असताना अस्पृश्यांच्या दृष्टीकोनातून त्यांनी एक सुंदर गीत लिहिले, मला देवाचे दर्शन घेऊ द्या. स्वच्छता कर्मी असलेल्या समाजाचे दुःख मांडणारे हे गीत. सावरकर लिहितात,
 
मला देवाचे दर्शन घेउ द्या
डोळे भरून देवास मला पाहुं द्या II धृ II

त्या काळी या समाजाला देवळात येण्याची बंदी होती. ही बंदी केवळ ब्राह्मणांनी घातली नव्हती तर सर्व समाजाने घातली होती. हा करंटेपण आपण केला होता हे सत्य आहे. आपण हिंदू सहिष्णू आहोत असे म्हणत असतो. पण आपण शत्रूंच्या बाबतीत सहिष्णू होतो. मात्र आपल्याच बांधवांप्रति आपण असहिष्णूता दाखवली आहे हे सत्य नाकारण्याचे कारण नाही. इस्लामचे अभ्यासक इस्लाममध्ये काय काय सांगतले लिहिले आहे याबद्दल सांगत असतात. पण इस्लामच्या पाईकांनी जगात जो अनन्वित छळ केला त्याबद्दल त्यांना बोलावेसे सुद्धा वाटत नाही. एखाद्या मौलविला सबंध मुस्लिम आतंकवाद्यांच्या विरोधात ते मुस्लिम नाहीत असा फतवाही काढावासा वाटत नाही. आजही ईस्लामचे पाईक, म्हणजे स्वतःला इस्लामवादी म्हणवून घेणारे व पंथासाठी हिंसा करणारे असे लोक आहेत. आतंकवादी संघटन आहे, तरी सुद्धा ह्याम्चे डोळे उघडत नाही. पण हिंदुंनी हा करंटेपणा आतातरी करायला नको. आपल्या पूर्वजांनी केलेल्या पापाचे पातक आपल्या डोक्यावर आहे. हे आपण स्वीकारले पाहिजे. अशा परिस्थितीत सावरकर गीत लिहितात. मला देवाचे दर्शन घेउ द्या, डोळे भरून देवास मला पाहुं द्या... ते पुढे लिहितात,
 
जो तुम्हिच करा दिनरात
मळ काढित मळले हात
म्हणुनीच विमल हृदयात
हृदय त्या वाहु द्या.

आम्ही तुम्हाला अस्पृश्य वाटतो? का? तर तुम्ही जो मळ निर्माण करता, तुम्ही शौच करता, तुम्ही कचरा निर्माण करता. ते शौच, तो कचरा आम्ही आमच्या निर्मळ खांद्यावरुन घेऊन जातो म्हणून आमचे खांदे, आमचे हात मलीन होतात. हा जो मळ दिसतोय हा तुमचाच तर आहे हिंदुबंधूंनो. हा मळ जर आम्ही स्वच्छ केला नाही तर रोगराई पसरेल आणि तुम्ही आजारी पडाल. मळ तुम्ही निर्माण करता, आम्ही तो स्वच्छ करतो. मग मला सांगा अस्पृश्य कोन आहेत? बंधूंनो तुम्हाला आमचे मळलेले, गलिच्छ हात दिसतात. पण आमचे मन निर्मळ आहे हो. आम्हाला फूल म्हणून आमचे ह्रदय कमळ देवाला अर्पण करु द्या. मला देवाचे दर्शन घेऊ द्या.  

मी तहान जल तो जाण
मी कुडि माझा तो प्राण
मी भक्त नि तो भगवान
चरण त्याचे शिवु द्या.

मी तहान आहे आणि भगवंत जणून माझे जल, पाणी. तहानलेल्या माणसाला पाण्यापासून बळजबरी दूर ठेवणे हे पाप आहे बंधूंनो. एकनाथ महाराज तर तहानलेल्या गाढवाला सुद्धा पाणी पाजतात. गाढव सुद्धा प्राण्यांमधला अस्पृश्य नव्हे का? तो माल वहन करण्याचे कार्य करतो. जर गाढवाला इतका मान आहे बंधूंनो मग आम्ही तर तुमच्यासारखी माणसे आहोत. मित्रांनो म्हणून सांगतो तहानलेल्या माणसाला पाण्यापासून दूर ठेवू नका. मी कुडी माझा तो प्राण... म्हणजे देह... मी देह आहे आणि तो भगवंत माझा प्राण आहे. देहातून प्राण काढून टाकलात तर तो देह निष्काम होतो, जाळण्यावाचून कोणतीच क्रिया त्या देहावर हो शकत नाही. म्हणूनच बंधूंनो, माझा प्राण मला परत द्या... माझा भगवंत मला द्या.. मी भक्त आहे, तो भगवान आहे. मला एकदा त्याच्या चरणाला स्पर्श करु द्या. मला देवाचे दर्शन घेऊ द्या.

तो हिंदु-देव मी हिंदु
मी दीन तो दया-सिंधू
तुम्ही माझे धर्माचे बंधू.
अडवु नका जाउ द्या
मला देवाचे दर्शन घेउ द्या...

त्याच्यात आणि माझ्यात काय अंतर आहे. माझा देव हिंदु आहे आणि मीही हिंदु आहे. मी दीन आहे, दुःख आहे... का? तर माझ्या भगवंताला मी पाहू सुद्धा शकत नाही? का? तर माझा अपराध केवळ एवढाच की तुम्ही निर्माण केलेली घाण मी स्वच्छ करतो. तो हिंदु देव, मी हिंदु, तुम्ही सुद्धा माझ्याच धर्माचे हिंदु बांधव आहात ना? मग का अडवता? नका अडवू, मला जाऊ द्या. माझ्या देवाचे दर्शन घेऊ द्या...

सावरकरांची ही कविता वाचताना हलकेच डोळ्यांत अश्रू तरळतात. हिंदु समाजाने बर्‍यापैकी भेदभाव बंद केले आहेत. जिथे जिथे हे भेदभाव होता तिथेही ते बंद झाले पाहिजे. पण लक्षात घ्या. आजच्या कॉर्पोरेटच्या जगात सुद्धा हा भेदभाव होतो. मोठमोठ्या कार्यालयात. मॅनेजर किंवा मालक त्यांच्या ऑफिसमध्ये शौचालय स्वच्छ करणार्‍या माणसासोबत कधीच जेवायला बसत नाही. तेथे तर जातीभेद नाही ना? मग हा कसला भेद आहे? हा भेद आहे पदाचा. इथे सुद्धा अहंकार आहेच, मग हा सुद्धा एकप्रकारची जातीभेद नव्हे का? सबंध जगामध्ये जाती आहेतच. त्या जातींना केवळ जाती म्हणत नाही इतकेच. हिंदुंमध्ये केवळ जाती व्यवस्था आहे. कास्ट मॅनेजमेंट. ही जातीव्यवस्था काहीतरी चांगलं करण्यासाठी निर्माण झाली असावी. पण काही काळानंतर ही व्यवस्था बोचायला लागली. जशी मॅनेजरच्या मनात आपल्या ऑफिसमध्ये शौचालय स्वच्छ करणार्‍या कामगाबद्दल तुच्छता निर्माण झाली, तशीच स्वतःला उच्च जातीचा समजणार्‍या समाजाच्या मनामध्ये निर्माण झाली. पण त्याच बरोबर स्वतःबद्दल हीनभाव बाळगणार्‍या अस्पृश्यता लादलेल्या समाजातही निर्माण झाली. मुकेश अंबानी आपल्या मुलीचं लग्न त्याच्या शिपायाच्या मुलीशी करवून देईल का कधी? हिंदुंमध्ये जो भेद होता तो अशाच प्रकारचा होता. जातीजातीमधील भेद जरी नष्ट होत गेला असेल तरी समाजात अजूनही भेद आहे. हे मात्र लक्षात घेतले पाहिजे. सावरकरांनी या भेदावर आसूड ओढलंय. पण ते आसुड ओढताना सावरकर हिंदु समाजाच्या आईच्या भूमिकेत होते मित्रांनो. समाजात कार्य करायचे असेल तर फेसबुकवर केवळ टिंगल टवाळी करणार्‍यांनी ही बाब लक्षात घेतली पाहिजे आणि काही शिघ्रकोपी हिंदुंच्या कृत्याला समोर ठेवून हिंदुत्ववाद्यांना दुषणे देणार्‍यांनी आणि हिंदुत्ववादी जणू आतंकवादी आहे असा भास निर्माण करणार्‍यांनी व स्वतःस हिंदुहितवादी म्हणवून घेणार्‍यांनी ही गोष्ट लक्षात घ्यावी. हिंदुत्ववाद्यांनी या देशासाठी बलीदान दिले आहे, टिळक, सावरकर अशा महापुरुषांनी प्रचंड मोठे कार्य करुन ठेवले आहे. ते हिंदुत्ववादी होते. ज्याप्रामणे कॉंग्रेसला चाणक्य ते शिवाजी महारांपर्यंत चालत आलेली परंपरा नष्ट करुन हिंदी राष्ट्रवाद निर्माण करायचा होता. त्याप्रमाणे स्वतःस हिंदुहितवादी म्हणवून घेणारी मंडळी हिंदुत्ववाद्यांना बदनाम करुन टिळ्क व सावरकरांची परंपरा जी परंपरा राम-कृष्ण-चाण्यक्यांपासून सुरु आहे ती परंपरा त्यांना बंद पाडायची आहे. हे लोक केवळ विशिष्ट बौद्धिक समजल्या जाणार्‍या लोकांमध्ये प्रसिद्ध असतात. त्यांना सर्वसामान्यांची मने कळ नाही आणि सर्वसामान्यांमध्ये ते जात सुद्धा नाही. एका विशिष्ट गुडीगुडी वातावरणात राहून ते लोकांना डोस पाजत असतात. तुम्ही हिंदुत्ववादी राहूनही हिंदुहिताचे कार्य करु शकता मित्रांनो. असे पळून जाऊन, आम्ही नाही त्यातले असे म्हणून काही होणार नाही. सावरकरांनी आपल्या पूर्वजांचे पाप धुण्याचे काम केले आहे. ते करीत असताना त्यांनी स्वतःला वेगळी विशेषणे लावून घेतलेली नाहीत. सावरकरांनी हिंदुत्व हा सुंदर ग्रंथ निर्माण केला. त्या ग्रंथात सर्वसमाजाचे हित आहे, जगाचे हित आहे. ते हिंदुत्व करंटे कसे असू शकते, त्या हिंदुत्वाची परंपरा पुढे चालवणारे हिंदुत्ववादी करंटे कसे असू शकतात? त्यामुळे जातीभेद नष्ट होत असताना हिंदूंमध्ये इतर कोणतेही भेद होणार नाही याची काळजी आपण हिंदुंनीच घेतलेली बरी... 
तुम्ही आम्ही सकल हिन्दू बंधू बंधू , तो महादेव ची पिता आपला चला तया वंदु...

लेखक: जयेश शत्रुघ्न मेस्त्री
9967796254
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आई व मुलाच्या ईश्वरीय नात्याचा खुन...


(आजची भारतीय तरुणाई कुठे चालली आहे? केवळ वासनेपोटी आई-मुलगा नात्याचा विसर पडावा? हया घाणेरडी मानसिकतेबद्दल डोळ्यात अंजन घालणारा लेख )









काही दिवसांपूर्वी मानवी समाजाला लाजवेल अशी धक्कादायक घटना अहमदाबादमध्ये घडली. २२ वर्षीय मुलाने आपल्या ४६ वर्षीय आईवर बलात्कार केला. या मुलाला पॉर्न पाहण्याचे व्यसन होते. कामावरुन घरी आल्यावर तो नेहमी मोबाईलवर पॉर्न पाहायचा. एके दिवशी अंधाराचा फायदा घेत त्याने आपल्याच आईवर बलात्कार केला. २०१४ मध्ये नालासोपारा येथे अशीच घटना घडली होती. २१ वर्षीय मुलाने आपल्या विधवा आईवर बलात्कार केला होता. मुलाला अंमली पदार्थांचं व्यसन होतं. आता फेब्रुवारीमध्ये सुद्धा विरारमध्ये एका २५ वर्षीय मुलाने आपल्या सावत्र आईला बेदम मारहाण करुन तिच्यावर बलात्कार केला, आई व मुलाच्या ईश्वरीय नात्याचा खून केला.

मानवाने ज्यावेळेस कुटुंब संस्था पत्करली किंवा निर्माण केली तेव्हा कालांतराने आई आणि मुल या नात्याला विशेष महत्व प्राप्त झालं. जी आपल्याला जन्म देते ती जननी ही ईश्वरासमान आहे. नव्हे नव्हे तर ती ईश्वरापेक्षाही ज्येष्ठ आहे, असं मानण्याची भारतात परंपरा आहे. भारतीय संस्कृतीत आईला प्रचंड महत्व प्राप्त झालं आहे. पाश्चात्य संस्कृतीमध्ये स्त्री ही किती मादक असते यावर भर देण्यात आला आहे. पण भारतात "स्त्री ही अनंत काळाची माता असते" असं म्हटलं जातं. भारतीय संस्कृतीने स्त्रीचा शृंगार स्वीकारलेला आहेच. पण आपल्या समाजाने स्त्रीच्या मातृत्वाच्या रुपावर अधिक भर दिला आहे. परमेश्वराला सुद्धा अवतार घेण्यासाठी आईची गरज लागते, असं म्हटलं जातं. स्वामी तिन्ही जगाचा आईवीना भिकारी... श्रीराम व श्रीकृष्ण या इतिहास पुरुषांना हिंदु जगतात अवतार मानलं गेलं आहे. त्यांचं मातृप्रेम सर्वश्रृत आहे. कृष्ण आणि यशोदा मातेचं नातं किती उदात्त... दोघांचं रक्ताचं नातं नसतानाही त्यांच्या प्रेमभावाच्या कथा ऐकून आपण भावूक होतो. श्रावण बाळ आणि भक्त पुंडलिक हे आदर्श मुलाचे प्रतिक आहेत. आपल्या भारत देशाला उत्तम, उदात्त व उन्नत परंपरा लाभली आहे. चालताना थकून रस्त्याच्या कडेला स्त्रीया झाडाखाली निजलेल्या असताना त्यांना स्पर्श करण्याची हिंमत वार्‍याला सुद्धा होत नसे, अशी उदाहरणं आपल्या ग्रंथात सापडतात. पण आजच्या भारताची स्थिती पाहिली तर चित्र अगदिच उलटे आहे. 

हे असे का झाले? याचे उत्तर आधुनिक विचारप्रणालित आहे का? आई, बहिण, पत्नी, मुलगी या सगळ्या जरी स्त्रीया असल्या तरी त्यांचा अधिकार वेगळा आहे. त्यांच्या सोबत वागण्याची पद्धत वेगळी आहे. लहानपणी आईचे दूध पिताना, बहिणीसोबत बागडताना, पत्नीसोबत संभोग करताना आणि मुलीचे लाड करताना, वेगवेगळ्या कारणांमुळे पुरुषाचा स्त्रीच्या शरीराशी संबंध येतो. परंतु त्यामागची भावना वेग-वेगळी आहे व उदात्त आहे. आपले पूर्वज कसे राहत होते हे आपण शालेय पाठ्यपुस्तकात शिकतो. समूह जीवनाची रुची निर्माण झाल्यावर कुटुंब व्यवस्था कशी प्रगत होत गेली याचे धडे आपण सर्वांनी गिरवले आहे. पशूंमध्ये कोणतेही नाते पाळले जात नाही. पण मानवाने स्वतःची अशी एक सामाजिक रचना निर्माण केलेली आहे आणि ही रचना जगातील बहुसंख्य देश पाळतात. काही सामाजिक बंधनं आहेत. ती पाळावी लागतात. मुलगी वयात आल्यावर वडिलांनी तिच्याशी वेगळ्या प्रकारे वागायचं असतं, शिस्तीत वागायचं असतं, अशी काही सामाजिक बंधनं आहेत. वयात आलेल्या मुलीशी आइ सुद्धा जरा जपून वागायची. सावरकरांनी लिहिलेल्या काळे पाणी या कादंबरीत आई व मुलीचे नाते पूर्वी कसे असायचे हे दिसून येतं. या कादंबरीतील काही ओळी इथे देतो. "तिच्या एकुलत्या एक मुलीचे लडिवाळ शब्द ऐकताच रमाबाईंच्या वात्सल्याचे इतके भरते आले की, एखाद्दा पित्या लेकरासारखे तिच्या लेकराचे मुके घेण्यासाठी रमाबाईंचे ओठ फुरफुरले. पण आईचे प्रेम जितके उत्कट असते तितकेच वयात येऊ लागलेल्या मुलीशी वागताना ते संकोची असते. मालतीच्या गालाला अगदी लागत आलेले आपले तोंड मागे घेऊन तिच्या आईने त्या वयात येऊ लागलेल्या लेकीच्या वदनाला दोन्ही हातात क्षणभर दाबून धरले आणि हळूच मागे सारीत मालतीला आश्वासिले." या प्रसंगावरुन आपल्या पूर्वीची रित लक्षात येते. आपण भारतात राहतो. भारताला घटना प्राप्त झाली आहे, कायदे आहेत. ते कायदे पाळावे लागतात, नाही पाळले तर शिक्षा होते. तसेच सामाजिक जीवनात काही बंधनं आहेत. ती बंधनं पाळावी लागतात. नाहीतर माणसाला अतिरिक्त स्वातंत्र्याची चटक लागते आणि एखाद्या गोष्टीची चटक लागली तर ती गोष्ट मिळवण्यासाठी तो कुठल्याही थराला जाऊ शकतो. म्हणून कायद्यांचि गरज पडली आहे. सज्जन माणसाला कधीच कायद्याची गरज नसते. कारण तो चांगलाच वागत असतो. पण दुर्जन माणसाला मात्र कायद्याची गरज असते. 

आपल्या भारतामध्ये तरुणांची संख्या अधिक आहे. हा तरुणांचा देश आहे. पण आपल्या भारतातील काही तरुण विकृतीकडे वळत आहेत. ऑक्टोबर २०१४ मधील वडोदरामधील घटना आहे. १५ वर्षीय मुलीनं आपल्या आवडत्या मुलाला नकार देणाऱ्या आई-वडिलांची राहत्या घरातच हत्या केली. एव्हढंच नाही, तर ही गोष्ट कुणालाही कळू नये यासाठी या मुलीने आई-वडिलांच्या मृतदेहावर अॅसिड टाकून जाळण्याचा प्रयत्न केला. कहर म्हणजे आई वडिलांची हत्या केल्यानंतर तिने प्रियकरासोबत शारीरीक संबंध प्रस्तापित केले. किती हि विकृती? आईवर बलात्कार ही घटना विकृतीला लाजवेल इतकी घृणास्पद आहे. भारतातील तरुण इतके विकृत का होत आहेत. या विषयावर तज्ञांनी मार्गदर्शन केले पाहिजे व यावर तोडगा काढला पाहिजे. कुठेतरी लोकमान्य टिळकांचे एक वाक्य वाचले होते, "धर्मामुळे नव्हे तर धर्म अजिबात नाकारल्यामुळे आपली अधोगती झाली आहे". या विकृतीमागचे हे तर कारण नसावे ना? कारण काही असो, ते शोधून त्यावर उपाय झाला पाहिजे. सरकारनेही पुढाकार घ्यावा.. यासाठी काही कार्यक्रम राबवले पाहिजेत. एक लेखक म्हणून अशा घटना वाचल्या की मला फार अस्वस्थ व्हायला होते. आपली मर्यादा लेखनापर्यंतच मर्यादित आहे, हे कळल्यामुळे दुःखही होतं. परंतु दुसर्‍याच क्षणी आठवतं की समाजावर लेखनाचा परिणाम होत असतो. म्हणून सकारात्मक लेखणी चालवण्याचा आनंदही होतो. सांगायचे तात्पर्य अधिकाधित साहित्यिकांनी या विषयावर प्रबोधन केले पाहिजे. या विषयावर चिंतन करण्याची हिच योग्य वेळ आहे. आपण सर्वांनी मिळून यावर विचार करुन कृती करण्याची गरज आहे. नाहीतर विनाश अटळ आहे. 

लेखक : जयेश शत्रुघ्न मेस्त्री
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