( उत्तरेतसुद्धा आ. संभाजीराव भिडे गुरुजीबाबत उत्सुकता. बघा ते व्यक्ती त्यांच्या बद्दल काय बोलत आहेत? ) |
अध्यात्म की झलकियों से गुजरते हुए जब जीवन राष्ट्र प्रेम और धर्म निष्ठा की ओर बढ़ा तो विचार और दृढ होते गए। जीवन के कुछ वर्षो में जब आगे बड़े तो समझ और परिपक्वता आने लगीं। कई संतों के विषय में जीवन मे सुना, पढ़ा, देखा, कभी सौभाग्य भी मिला भेंट करने का, दर्शन करने का। इसी पथ पर आगे बढ़ते हुए राष्ट्र और धर्म यज्ञ में कैसे अपनी कुछ आहुति अर्पित कर सकूं? इस प्रयोजन से चिन्तन मनन क्रियान्वयन चलता रहा। और फिर किसी चर्चा में मेरे बहनोई साहब ने मुझसे एक अजीब से नाम की चर्चा की। कुछ भिड़े गुरुजी ।
२ वर्षो से कोई मुहिम में जाने का बोलते रहे ,जाने कहा जंगल पहाड़ में ५ दिन। मुझे लगा क्या फालतू बाते हैं । ये कौनसी देश भक्ति हुई ? फिर बताया कि छत्रपती शिवाजी महाराज के गढ़ पर जाना है, अब राष्ट्र निष्ठा और धर्म निष्ठा का पर्याय श्री शिवाजी महाराज का नाम लिया। तो देश और धर्म प्रेम जो अंदर खलबली मचाने लगा, तो निश्चय किया कि चलकर देखा जाए।
अकल्पनीय अनुभव.... क्या ये ५० हज़ार लोग संपूर्ण राष्ट्र से केवल शिवाजी महाराज को जानने नदी पहाड़ जोख़िम भरे रास्ते पैदल ५ दिन अपना सामान बिस्तर रोटी साथ लिए जंगलो में चले जा रहे हैं???
में भी चल पड़ा, न किसी से जान न पहचान जहा थक कर रुको पडोस में बैठा अपरिचित हाल चाल पूछेगा, पानी देदेगा(जो केवल २० रुपये की बोतलों वाला नही है,अमूल्य है क्योंकि इस बीहड़ जंगलों में अगली बूँद पानी की कब मीले मालूम नही), कुछ खाने को देदेगा।
मुझे लगा क्या है ये, क्यों इतना प्रेम मुझसे, अब एक नही दो नही तीन दिनों में समझ आने लगा कि ये सब संस्कारित है और हर हिंदु को अपना ही मानते है, लगा जाने ये जो गंगा बह रही है, देश प्रेम की, धर्म प्रेम की, अपनेपन की इसका उदगम कहा है???
जिज्ञाशा बड़ी तो अपने बहनोई साहब से पूछ ही लिया, की कौन है वो गुरुजी ज़रा मिलवाओ तो, देखे ज़रा जिसकी एक आवाज़ पर ये ५० हज़ार लोग इतना पागलपन करने आगये, धर्म रक्षा देश हित के लिए तो ये रण बांकुरे क्या नहीं करेंगे,
देखे उस अद्धभुत मूर्ति को, मुझे बताया गया था कि वे बड़े साधारण व्यक्ति हैं, पर जब दर्शन हुए तो क्या पाया,
एक धोती कुर्ते में नंगें पैर एक बूढ़ा सा नौजवान.... अब आप कहोंगे ये बूढ़ा सा नौजवान मतलब क्या,
अरे इसलिये क्योंकि, ये वही व्यक्ति थे जो पिछले ३ दिन से भूखे, प्यासे बीना थके बिना रुके मुझसे पहले अगले पड़ाव पर सामान्य लोगो के बीच दर्रे पहाड़ नाले नंगे पैर चढ़े जा रहे थे,
पता चला यही भिडे गुरुजी है, प्रणिपात होने के अलावा कुछ और समझ नही आया, वो तेज चेहरे पर जिसमें करोडों सुर्य की रश्मियां समाहित हो देख नेत्रों से अश्रु धारा बह चली, मुझसे परिचय करवाया किसी व्यक्ति ने, मराठी में
"मैंने कहा गुरुजी मुझे मराठी नही आती, "
तो उन्होंने पूछा "आपका शुभ नाम क्या है?"
"मैंने बताया अखिलेश दुबे,"
नाम तो शुभ नही था, पर गुरुजी के मुख से जब उच्चारित हुया तब अवस्य शुभ हो गया
"पूछा क्या सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो?"
मन ही मन मैं कहने लगा गुरुजी आपकी तरह ही , मुझे बताया गया था कि गुरुजी पुणे विश्व विद्यालय में प्राध्यापक रहे हैं, फिर ध्यान आया कि नहीं मैं उनके सामने क्या हूँ।
वे तो जीवन के प्राध्यापक है जो राष्ट्र भक्त और धर्म निष्ठ व्यक्ति बनाते है, वे अपने आप मे एक विश्वविद्यालय हैं, वे ऊर्जा का ऐसा श्रोत है जिनके प्रकाश लाखों तरुण बाल और नवयुवक सराबोर हो गए हैं
प्रतिष्ठान के विषय मे भी जाना कि क्या उद्देश्य लेकर और कैसे ये कार्य कर रहा है, और शायद कह सकता हु की सच मे अद्भुद प्रयोग शाला है जहाँ व्यक्ति उनके मार्गदर्शन में रह कर एक राष्ट्र निष्ठ और धर्म निष्ठ बनकर निकलेगा।
यहीं इन योगी की तपस्या का परिणाम हैं .....!!!!
-अखिलेशराव दुबे
इंदौर
दुबे जी , नमस्ते. आपके विचार पढकर अच्छा लगा. आपके विचार से आप जैसे हजारों युवांओ को आप जैसे प्रेरना मीले ये शुभकामना
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